International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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विदेशों में हिन्दी:प्रचार-प्रसार और स्थिति

    1 Author(s):  DR.URMIL RANI

Vol -  5, Issue- 7 ,         Page(s) : 180 - 186  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

गतवर्ष, अंग्रेजी-आभिजात्य में पले-बढ़े भारतीयों के कारण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का हिंदी और संस्कृत अध्ययन-अध्यापन बंद कर देना हमारे समक्ष कई प्रश्न छोड़ गया। पश्चिमी विश्वविद्यालयों में हिंदी और संस्कृत विषय के अध्ययन और अनुसंधान का भारत में, हम भारतीयों के लिये क्या अर्थ है? कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का संस्कृत-हिंदी विषयों का अध्ययन बन्द किये जाने से लोग क्यों अपने को आहत महसूस करने लगे? क्यों-कर भारतीय विश्वविद्यालयों के पोस्ट-ग्रेजुएट छात्र भी अपनी बौद्धिक-जिज्ञासाओं के समाधान हेतु पश्चिमी विश्वविद्यालयों में संस्कृत-हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन हेतु प्रवेश लेते हैं? अपने राष्ट्रीय-गौरव के आहत-मन से हम देखने को मज़बूर हैं कि हमारी आंखों के सामने पश्चिमी जगत के सर्वमान्य शिक्षा केंद्र ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय संस्कृत और हिंदी विषयों का अध्ययन-अध्यापन बन्द कर देते हैं। इस निर्णय से हम आहत हो सकते हैं किन्तु यहीं एक प्रश्न उभरता है कि अपने देश के प्रतिष्ठित शिक्षा केन्द्रों में संस्कृत, हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं (वर्नाकुलर) के अध्ययन को हम स्वयं कितना महत्त्व देते हैं?

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