International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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भारतीय परिवेश में जलवायु परिवर्तन: संतुलित करने के नवीन आयाम

    1 Author(s):  LAXMAN JAISWAL

Vol -  7, Issue- 2 ,         Page(s) : 21 - 26  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

भारतीय परिवेश में जीने वाले लोग अपनी शान-शौकत की मोह-माया में आकर तथा तरक्की की रहा पर दिनों दिन चलकर अपनी प्राकृतिक सम्पदा (जंगल, नदी, पर्वत, पठार) का हनन कर रहा है। मनुष्य अपनी सुख सुविधाओं के साधन उपलब्ध कराने में पर्यावरण का क्षरण कर रहा है अर्थात् जिस गति से समाज तरक्की कर रहा है कहीं उससे अधिक गति से देश में प्राकृतिक सम्पदा नष्ट हो रही है, जिसका बुरा प्रभाव पुरा समाज झेल रहा है, मनुष्य अपनी विलासिता की वस्तुओं के उपभोग के पीछे प्रकृति का निरन्तर दोहन करता चला आ रहा है। जिसका कहर सम्पूर्ण समाज अत्यधिक जोखिमों के साथ झेल रहा है, हमारी जलवायु दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती जा रही है, समाज तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) तथा प्रदूषण के प्रकोप से गहन चिंतनशील दिखाई दे रहा है।

  1. योजना मई 2012 पृष्ठ 21
  2. योजना मई 2012 पृष्ठ 09
  3. योजना मई 2012 पृष्ठ 09
  4. योजना मई 2012 पृष्ठ 21
  5. भारतीय अर्थव्यवस्था, मिश्र पुरी-2011 पृष्ठ 39
  6. भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास- NCERT. पृष्ठ 176 
  7. भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास- NCERT. पृष्ठ 177
  8. योजना मई- 2012 पृष्ठ 36
  9. भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्र पुरी- 2011 पृष्ठ 54
  10. भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्र पुरी- 2011 पृष्ठ 54  
  11. आर्थिक समीक्षा 2014-15 वाल्यूम- प्प् पृष्ठ 123
  12. आर्थिक समीक्षा 2014-15 वाल्यूम- प्प् पृष्ठ 123
  13. आर्थिक समीक्षा 2014-15 वाल्यूम- प्प् पृष्ठ 124

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