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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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संस्कृत रूपको में वर्णित शकुन – अपशकुन - एक विश्लेषण

    1 Author(s):  JAHANARA

Vol -  7, Issue- 2 ,         Page(s) : 70 - 77  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

आरम्भ से लेकर दसवीं शताब्दी तक के रूपकों का अध्ययन करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि शुभ और अशुभ शकुनों के द्वारा लोगों का कार्यकलाप गंभीर रूप से प्रभावित होता था। शकुनों को प्राचीनकाल में प्रचलित मान्यताओं तथा मापदण्डों पर आंका जाता था। शकुन को सफलता का संकेत और अपशकुन को असफलता का संकेत माना जाता था। रूपकों में भावी शुभ-अशुभ घटनाओं के सूचक रूप में कतिपय शकुन-अपशकुनों का वर्णन मिलता है। किन्तु इनके सत्यापन का कोई तार्किक पक्ष न होने के कारण ये तत्कालीन समय के अन्धविश्वासों की ही अभिव्यक्ति करते प्रतीत होते हैं। वर्तमान में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। इन शकुन और अपशकुनों के प्रति सामान्यजनों की कितनी गहरी आस्था थी, वह रूपकों में उपलब्ध उल्लेखों के माध्यम से परिलक्षित होती है।

  1.  बा0च0, 1/9
  2. प्रथमा-(जनान्तिकम्) सखि मदनिके। अपूर्वमिदं राजकुलं प्रविशन्त्याः प्रसीदति मे हृदय।द्वितीया- ज्योत्स्निके अस्ति खलु लोकप्रवादः आगामि सुखं दुखं वा हृदयसमस्या कथयतीति। मा0वि0, 5/पृ0 345-346
  3. न सुलभा सकलेन्दुमुखी च सा किमपि चेदमन विचेष्टितम्। अभिमुखीष्विवकाङ्क्षितसिद्धिषु व्रजति निर्वृत्तिमेकपदे मनः।। विक्रमो0, 2/9
  4. श्रुतं च मया, योऽपि किल शत्रुं व्यापाद्यमानं पश्यति, तस्यान्यस्मि जन्मान्तरेऽक्षिरोगो न भवति। मृच्छ0, 10/पृ0 314
  5. नागा0, 1/18
  6. माथे पर पगड़ी का चिह्न दिखाई दे रहा है। भौंहों के बीच भौंरी है। रक्तकमल की तरह आँखें लाल हैं। छाती सिंह से होड़ करती है। दोनों पैरों में चक्र के चिह्न हैं-इनसे मैं समझता हूँ कि यह महापुरुष विद्याधरों के चक्रवर्ती पद के बिना पाये रहेगा नहीं।
  7. हनुमन्नाटक के प चम अ में राम दाहिनी ओर सर्प के फन पर बैठे हुए ख जन (पक्षी) को देखकर अपने राज्य मिलने का शकुन मानते हैं।1
  8. रूपकों में पुरुषों के दक्षिणाक्षिस्पन्दन तथा स्त्रियों के वामाक्षिस्पन्दन को
  9. शुभसूचक माना गया है। रूपकों में वर्णित अंग-स्पन्दन का वर्णन कुछ इस प्रकार है-
  10. अभिज्ञानशाकुन्तल के प्रथम 2 तथा सप्तम अ   में राजा दुष्यन्त के दक्षिण
  11. बाहु में स्फुरण होने का उल्लेख हुआ है, जिसे वह स्त्रीप्राप्तिनिमित्तक शुभ शकुन मानता है। है।4
  12.  मालविकाग्निमित्र में मालविका अपनी बाँयी आँख फड़कने को शुभ मानती
  13.  मृच्छकटिक प्रकरण में आर्यक की जब दाहिनी भुजा फड़कती है तब उसे
  14. सब कुछ अनुकूल और हर्षयुक्त लगता है।5
  15. राज्यं भुज  स्य फणाधिरूढ़ो   व्यनक्त्यहो! दक्षिणख रीटः।। ह0ना0, 5/28
  16. शान्तमिदमाश्रमपदं स्फुरति च बाहुः कुतः फलमिहास्य।अथवा भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।। अ0शा0,1/16
  17. मनोरथाय नाशंसे किं बाहो स्पन्दसे वृथा। पूर्वावधीरितं श्रेयो दुःखं हि परिवर्धते।। वही, 7/13
  18. मा0वि0, 5/पृ0 343
  19. अये शस्त्रं मया प्राप्तं स्पन्दते दक्षिणो भुजः। 

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