International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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संस्कृत रूपको में वर्णित शकुन – अपशकुन - एक विश्लेषण
1 Author(s): JAHANARA
Vol - 7, Issue- 2 , Page(s) : 70 - 77 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
आरम्भ से लेकर दसवीं शताब्दी तक के रूपकों का अध्ययन करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि शुभ और अशुभ शकुनों के द्वारा लोगों का कार्यकलाप गंभीर रूप से प्रभावित होता था। शकुनों को प्राचीनकाल में प्रचलित मान्यताओं तथा मापदण्डों पर आंका जाता था। शकुन को सफलता का संकेत और अपशकुन को असफलता का संकेत माना जाता था। रूपकों में भावी शुभ-अशुभ घटनाओं के सूचक रूप में कतिपय शकुन-अपशकुनों का वर्णन मिलता है। किन्तु इनके सत्यापन का कोई तार्किक पक्ष न होने के कारण ये तत्कालीन समय के अन्धविश्वासों की ही अभिव्यक्ति करते प्रतीत होते हैं। वर्तमान में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। इन शकुन और अपशकुनों के प्रति सामान्यजनों की कितनी गहरी आस्था थी, वह रूपकों में उपलब्ध उल्लेखों के माध्यम से परिलक्षित होती है।