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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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उपनिषदों में वर्णित यम-नियमों का स्वरूप

    1 Author(s):  DR. MOHINI ARYA

Vol -  6, Issue- 12 ,         Page(s) : 198 - 206  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्षप्राप्ति है। मोक्षप्राप्ति हेतु ऋषियों ने अनेक उपाय बताये हैं। उन उपायों में योग सर्वोत्तम उपाय है। योग शब्द वेद, उपनिषद्‌ आदि शास्त्रों में अतिप्राचीन काल से व्यवहृत होता आया है। भारतीय दर्शनों में तो योग एक अत्यन्त महत्वपूर्ण शब्द है। योगदर्शन में योग का उन्नत तथा स्पष्टरूप दृष्टिगोचर होता है।

  1. योगश्चित्तवृत्तिनिरोध्ः ;योग.द., 1.2द्ध
  2. यो.द., 1.1द्ध
  3. ग्वेद 10/166/5
  4. योगस्थः वुफरुकर्माणि व्यक्त्वा ध्न×जयः।
  5. सि(यसि(योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्येत ;गीता., 2.48द्ध
  6. मुण्डकोप. 3.1.6
  7. सत्यं वद। सत्याÂ प्रमदितव्यम्। ;तैत्तिरीयो. 1.10.1द्ध
  8. बृहदारण्य. 1.4.1.4
  9. मुण्डकोप. 2.1.7
  10. प्रश्नोप. 5.3
  11. योगदर्शन, सू.-102 पर व्या. भाष्य  
  12. कठोप. 1.1.15
  13. कठोप. 1.1.26
  14. योग.सू. 2.32 पर व्या. भाष्य
  15. यस्तु विज्ञानवान् भवति समनस्कः सदा शुचिः।
  16. स तु तत्पदमाप्नोति यस्माद् भूयो न जायते।। कठोप. 3.8
  17. सन्तोषः सÂिहित साध्नादध्किस्यानुपादित्सा। यो.सू. 2.32 पर व्या. भाष्य 
  18. ईशोप. 1.1
  19. तच्च चित्तप्रसादमवाध्.......सेव्यम्। यो.सू. 2.1 
  20. स्वाध्यायः प्रणवादिपवित्राणां मन्त्राणां जपः मोक्षशास्त्राध्ययनं वा। यो.सू.व्या.भा. 2.1

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