International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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लघु कथा के विकास में मालती जी का योगदान
1 Author(s): MANJU PATEL
Vol - 1, Issue- 1 , Page(s) : 182 - 187 (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
सर्वमान्य है कि हिन्दी लघुकथा का उद्भव हमें वेदों एवं अन्य पौराणिक ग्रन्थों में ही मिलता है। इसके पश्चात् 1875 ई0 में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘परिहासिनी’ पुस्तक में प्रकाशित लघुआकारीय कथात्मक एवं व्यंग्य करती चुटीली रचनाओं में वर्तमान लघुकथा के बीच तत्व उपलब्ध होने लगते हैं। 1961 ई. से 1980 ई. तक जिसे विद्वानों ने इसका पुनरुत्थान काल माना है, से विकास पाती हुई 1981 से 1990 तक इस विधा का स्वर्णकाल माना जाता है, में प्रवेश करते हुए बाद में यानि 1991 ई. से विकास काल में पूरी शानो शौकत से उपस्थित हो जाती है और साहित्य की अन्य महत्वपूर्ण विधाओं के समान ही यह विधा भी सहज ही विराजमान हो जाती है।