International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 998    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

वास्तुकला इतिहास के स्त्रोत के रूप में

    1 Author(s):  ANJU MALIK

Vol -  7, Issue- 12 ,         Page(s) : 85 - 88  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

मानव विकास एक क्रमिक विकास की कहानी है। प्रारम्भ में मानव का जीवन विचरणशील था। वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर डेरे डाल कर रहता था। फिर गुफा आदि के रूप में विकास करते हुए सुदृढ़ भवनों तक पहुॅचा। भवन-निर्माण कला एवं शिल्प विज्ञान का नाम ही वास्तुकला है। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, वैसे -वैसे वास्तुकला भी अपने चर्मोत्कर्ष पर पहॅुच गई। सराय नाहरराय, बागौर आदि पुरास्थलों से हमें प्रारम्भिक मानव के घरों के प्रारूप का ज्ञान होता है। प्राग हड़प्पा व हड़प्पा काल में हमें वास्तुकला के विकसित प्रमाण मिलते हैं। सार्वजनिक सभा भवन, विशाल स्नानागार, अन्नागार आदि सैंधव स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। बाद में भारतीय स्थापत्य एवं वास्तुकला के अन्र्तगत भवनों, स्तूपांें, चैत्यांें, तोरणों, वेदिकाओं, विहारों तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। मौर्यकालीन स्थापत्य कला पर विदेशी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण मध्यकाल व पूर्व मध्यकाल में बहुत अधिक हुआ। इनकी भव्यता व उत्कृष्टता हमारे लिए आज भी गौरव का विषय है।

  1. पिल्लैई:- The Way of Shilpy
  2. केटकर, संध्या:- The History of Indian Art.
  3. सहाय, डाॅं0 सच्चिदानन्द: मन्दिर स्थापत्य का इतिहास 
  4. मजूमदार, आर0 सी0: The Clasical Accounts of India, फारमा के0 एल0 मुखोपाध्याय, कलकत्ता, 1960. 
  5. शर्मा, कालूराम व प्रकाश व्यास:- मध्यकालीन भारत का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, पंचशील प्रकाशन, जयपुर, 2004.

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details