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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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वैयाकरणों का लक्षणा-विषयक विचार

    2 Author(s):  KULDEEP , MANOJ ARYA

Vol -  4, Issue- 3 ,         Page(s) : 665 - 682  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

शक्ति के प्रसङ्ग में कौण्डभट्‌ट पदमात्र में ही अतिरिक्त शक्ति का समर्थन करते हैं,1 जिस प्रकार इन्द्रियों में अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने की अनादि योग्यता है,उसी प्रकार शब्दों का अर्थों के साथ अनादि सम्बन्ध होता है। अर्थात्‌ जिस प्रकार आँख में प्रत्यक्ष करने की अनादि कारणता है, उसी प्रकार शब्दों में भी अर्थबोधन की अनादि कारणता है, वही योग्यता है, और वही शक्ति हैं।

1. शक्तिप्रसघõात्, वैयाकरणभूषण,पृ॰ सं॰ 211
2. इन्द्रियाणां, पृ॰ सं॰ 211
3. केचित्तु....... पृ॰ सं॰ 214
4. न चार्थ............. पृ॰ सं॰ 269
5. वैयाकरणभूषणसार, पृ॰ सं॰ 270-271
6. वैयाकरणभूषणसार, पृ॰ सं॰ 272
7. प्रत्यक्षादि॰ वैयाकरणभूषणसार पृ॰ सं॰ 215
8. अपि॰.... पृ॰ सं॰ 215
9. न च॰......... पृ॰ सं॰ 215
10. कि×च॰..... पृ॰ सं॰ 215
11. ‘नच इदं॰ ...... पृ॰ सं॰ 215
12. शक्तिभ्रमानुरोध्ेन॰  पृ॰ सं॰ 215
13. वृतिजन्योपस्थितित्वेनैव॰  पृ॰ सं॰ 215
14. वृत्तित्वं॰  पृ॰ सं॰ 215
15. यत्तु॰  पृ॰ सं॰ 216
16. अन्यथा॰  पृ॰ सं॰ 216
17. कि×च॰.............. पृ॰ सं॰ 215
18. ‘घटपदं॰  पृ॰ सं॰ 
19. कि×च॰  पृ॰ सं॰ 216
20. ‘घटपदं॰  पृ॰ सं॰ 
21. ननु॰ पृ॰ सं॰ 216
22. ननु पृ॰ सं॰ 216
23. ननु॰ पृ॰ सं॰ 216
24. एतेन॰ पृ॰ सं॰ 217
25. ननु-लक्षणाया, वही, पृ॰सं॰ 217
26. अत एवं-‘अक्षाति’, वही, पृ॰सं॰ 217
27. परमते{पि, पृ॰सं॰217
28. तन्न। सति तात्पेर्य परमलघुम×जूषा, पृ॰ सं॰ 73
29. वही पृ॰ सं॰ 74

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