International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
संजीव के उपन्यासों में नारी का चित्रण
2 Author(s): NYNABAHEN R. TABIYAD,P.S.PANESER
Vol - 12, Issue- 7 , Page(s) : 157 - 161 (2021 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
इतिहास के प्रारम्भिक रूप को देखने से ज्ञात होता है कि शुरू से ही नारी परिवार का केन्द्र बिन्दु रही है। इसलिए सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। वैदिक काल में परिवार के सभी कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे।