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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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कबीर के साहित्य में भाषिक विविधता

    1 Author(s):  SANTOSH

Vol -  5, Issue- 2 ,         Page(s) : 354 - 364  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

संत कबीर की भाषा विविधता के तीन कारण परिलक्षित होते है एक, कबीर युगीन परिस्थितियां ऐसी थी कि उन्होंने एक विषय पर नहीं अपितु हर विषय पर अभिव्यक्ति दी। राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक परिस्थितियां मानव को त्रस्त कर चुकी थी। अतः कबीर ने एक ओर मानसिक, आत्मिक शान्ति के लिए अध्यात्मवाद अर्थात रहस्यवाद के माध्यम से छटपटाहट को अभिव्यक्त किया। उल्टवासी प्रतीकांे के प्रयोग से उनकी भाषा रहस्यमयी लगती है। इनका प्रयोग मानव मस्तिष्क को व्यायाम कराता नजर आता है। समाज मंे व्याप्त कुरीतियों, धार्मिक आडम्बरों, पाखण्ड एंव बाजारवाद पर प्रहार करते हुए कबीर ने ओजपूर्ण एंव व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया है.

  1.  कबीर ग्रन्थावली (सटीक) राम किषोर शर्मा पृ0 8
  2.  कबीर ग्रन्थावली (सटीक) पृ0 8
  3.  कबीर ग्रन्थावली (सटीक) पृ0 9
  4.  बीजक, साखी 187, पृ0 423
  5.  डब्लु0टी0, स्टेस, टाइम एण्ड इटरनिटी, पृ0 41
  6.  कबीर बचनावली, अनुभव 76, पृ0 100
  7.  प्रोफेसर मसीह से भंटवार्ता के क्रम में उनके सौजन्य से प्राप्त विचार से
  8.  वसीली, क्रापीविन, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद क्या है? पृ0 317 और यू0ए0 खरीन, फन्डामेंटल्स और डायलेक्टिक्स, पृ0 159
  9.  बीजक, साखी 189, पृ0 424
  10.  द जनरल आॅफ फिलाॅसफी, वाॅल्युम ग्स्टप्प्प् , जनवरी -दिसम्बर, 1951 पृ0 797-808
  11.  साखी ग्रंथ, भाषा को अंग 1 पृ0 555

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