International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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विजयदांन देथा का बात साहित्य -बाता री फुलवाड़ी और लोक तत्व
1 Author(s): GOKUL CHAND SAINI
Vol - 1, Issue- 2 , Page(s) : 214 - 221 (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
मनुष्य ने जब से ही इस पृथ्वी पर कदम रखा तब से ही वह मनोरंजन के लिए कुछ न कुछ करता ही रहा है - जैसे घूमना, फिरना, दौड़ना, कहना-सुनना आदि। कहने-सुनने की इस परम्परा मे बातों का प्रमुख स्थान है। बात का आरम्भ कब हुआ और यह किस रूप में शुरू की गई अथवा सर्वप्रथम इसका रूप क्या था। इस विषय में अभी तक कोई भी विद्वान पूर्णतया अपना मत नहीं दे सका है।