International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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धर्मनिरपेक्षता पर हावी अज्ञानता
1 Author(s): MANJU
Vol - 13, Issue- 1 , Page(s) : 111 - 114 (2022 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
वसुदैव कुटुम्बकम की अवधारणा ने हमेशा से ही विश्व के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। समय-समय पर भिन्न-भिन्न मतों के लोग भारत आए और यही बस गए। जिसका परिणाम हम आज बहुल संस्कृति के रूप में देखते है। विविधता में एकता की अवधारणा ऊपरी तौर पर देखने से जितनी सकारात्मक व खूबसूरत लगती है, वही उसे स्थापित करना कतई आसान नहीं है। भारत में भी अकसर मतैकय के अभाव के स्वर न केवल सुनाई देते है बल्कि हिंसक रूप भी ग्रहण कर लेते हैं।