संतगुरु रविदास का सामाजिक चिंतन और वर्तमान काल में उसकी प्रासंगिकता
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Author(s):
DR. PAPPOO KATARIA
Vol - 6, Issue- 4 ,
Page(s) : 61 - 65
(2015 )
DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
Abstract
पृथ्वी पर जब से जीवन आरंभ हुआ है तब से हजारों वर्षों बाद मानव का अतिस्तव सामने आया था, तब से लेकर हम एक समाज की मर्यादा में रहकर अपना जीवन-व्यापन करते हंै। समाज से कोई भी बड़ा नहीं है, ना धर्म, ना मनुष्य। सब तरफ समाज की सर्वव्यापक है। मानव ने अपने जीवन जीने के तरीकें बनाये है, और उस असीम प्रभु जिसका कोई आकार नहीं है उसको बनाया है। चाहे उसे हम हिंदू धर्म कहे, चाहे हम मुस्लिम धर्म कहे, चाहे हम उसे सिक्ख धर्म कहे, चाहे उसे बौद्ध धर्म कहे, चाहे जैन धर्म कहे या इसके अलावा जिन्हे मानव मानता है और जिनको मानव ने बनाया है। उस परम प्रभु ने मानव को एक समान ही बनाया है चाहे वह किसी भी समुदाय का क्यों ना हो। सबसे पहले सब समान है। यह मानव ने ही मानव को एक-दूसरे से श्रेष्ठ समझने के लिए बनाये है। संतगुरु रविदास जी महाराज ने भी समाज को अपने समय में यही संदेश दिया था कि हम सब एक ही उस असीम शक्ति के अंश है, जो सर्वव्यापक है। इससे नहीं ंतो बाहर है और नहीं अंदर है। मानव मन शरीर ही सबसे बड़ा प्रभु है, अल्लाह है, रहीम है।
- संत रविदास, कृतिव जीवन और विचार योगेन्द्र सिंह, अक्षर प्रकाशन, प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली।
- दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास , सुभाष चंद्र, आधार प्रकाशन, पंचकूला हरियाणा।पृ. 11,12, 52
- संत गुरुरविदास वाणी, सूर्य भारती प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 24
- गुरु रविदास जीवन दर्शन , धर्मपाल सिंहल, पब्लिकेशन ब्यूरो, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ पृ. 25-26
- विलक्षण प्रतिभा के स्वामी गुरु रविदास, हरप्रीत कौर, प्रकाशक हरप्रीत कौर, चंडीगढ़। पृ. 62, 63,90
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