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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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मानव विकास और भूगोल

    1 Author(s):  PUKHA RAJ GOSWAMI

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 78 - 82  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

वृद्धि और विकास दोनो समय के संदर्भ में परिवर्तन को इंगित करते है। अंतर यह है कि वृद्धि मात्रात्मक और मूल्य निरपेक्ष हैै। इसका चिन्ह धनात्माक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। इसका अर्थ है कि परिवर्तन धनात्मक (वृद्धि दर्शाते हुए) अथवा ऋणात्मक (ह्रास इंगित करते हुए) हो सकता है। विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन है जो मूल्य सापेक्ष होता है। इसका अर्थ है कि विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक वर्तमान दशाओ में वृद्धि न हो। विकास उस समय होता है तथापि सकारात्मक वृद्धि से सदैव विकास नही होता। विकास उस समय होता है गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है।

1. मानव भुगाोल के मूल सिद्धान्त -छब्म्त्ज् 
2. भारत लोग और अर्थव्यवस्था - छब्म्त्ज्
3. अतुल लोहिया,मनोज कुमार सिंह ”भूगोल एक सार“ प्रभा पब्लिकेशन, वजीराबाद दिल्ली 
4. महेश कुमार बर्णवाल ”भूगोल एक समग्र अध्ययन“ काॅसमोस पब्लिकेशन, वजीराबाद दिल्ली
5  मानव विेकास प्रतिवेदन 2005
6  मानव विकास रिपोर्ट -2011

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