International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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भूली–बिसरी गाथा: वीरांगना झलकारी बाई
1 Author(s): NEELAM
Vol - 6, Issue- 7 , Page(s) : 93 - 99 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
सार – वह न तो रानी थी न पटरानी । वह किसी सामन्त की बेटी भी नही थी तथा किसी जागीरदार की पत्नी भी नही । उसे न तो महल चाहिए थे, न कीमती जेवर , न रेशमी कपडे न दुशाले । वह तो गांव भोजला के साधारण कोरी परिवार में पैदा हुई थी और पूरन से ब्याही गई थी । पिता भी आम परिवार से थे और पति भी । लेकिन देश और समाज के प्रति प्रेम और बलिदान से , जिसने अपनी जगह इतिहास में बनाई , वह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई थी । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरांगना झलकारी बाई का महत्वपूर्ण प्रसंग हमे 1857 के उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है , जो इतिहास में भूले –बिसरे है । बहुत ही कम लोग जानते है कि झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेलियों में से एक थी , रानी की सेना की महिला शाखा ‘ ‘ दुर्गा दल ‘ की सेनापति थी । झलकारी बाई ने समर्पित रूप से न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया बल्कि देश के लिए अपना सर्वस्व भी बलिदान कर दिया ।