International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पद्वति
1 Author(s): AMRITA CHAURASIA
Vol - 6, Issue- 7 , Page(s) : 147 - 154 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
कला का साधक कला को उच्च शिखर तक पहँुचा सकता है किन्तु चिन्तक उसे समाज से जोड़ता है, समाज में प्रतिष्ठित करता है। साधना कला में दक्षता पैदा करती है तो चिन्तक कला को परखना सिखाती है। आधुनिक-युग तक की एक लम्बी यात्राकाल में हिन्दुस्तानी-संगीत-कला एवं शिक्षा-प्रणाली में अनेक उतार-चढ़ाव आये। प्राचीनकाल में गुरू-शिक्षा-प्रणाली के द्वारा रागों का अध्ययन-अध्यापन दीर्घकालिक एवं श्रमसाध्य था। संगीत सम्बन्धी वेद सामवेद के शिक्षा ग्रन्थ नारदीय शिक्षा में नारदमुनि ने संगीत शिक्षण सम्बन्धी नीति नियमों का विस्तृत रूप से विवरण दिया है।