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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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हरिशंकर आदेश की सप्तशतियों में प्रकृति-चित्रण

    1 Author(s):  SUNITA KUMARI

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 209 - 214  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

प्रकृति अनादिकाल से मानव की सहचरी रही है वर्तमान में भी है एवं अनन्त काल तक मानव एवं प्रकृति का अन्योन्याभय सम्बन्ध अविराम गति से चलता रहेगा । साहित्य समाज का दर्पण है । काव्य साहित्य का संकुचित रूप है जो मानव की सर्जना है।

  1. प्रो॰ हरिशंकर ‘आदेश’ - निर्मल सप्तशती - निर्मल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 2001
  2. प्रो॰ हरिशंकर ‘आदेश’ - आदेश सप्तशती - निर्मल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 2001
  3. प्रो॰ हरिशंकर ‘आदेश’ - जीवन सप्तशती - विशाल प्रकाशन, दिल्ली, 2002
  4. महाकवि हरिशंकर ‘आदेश’ - जमुना सप्तशती - लक्ष्मी प्रकाशन, दिल्ली, 2003
  5. प्रो॰ हरिशंकर ‘आदेश’ - विवेक सप्तशती - चंद्रा प्रकाशन, मुदादाबाद, 2004
  6. प्रवासी महाकवि ‘आदेश’ - पत्नी सप्तशती - चंद्रा प्रकाशन, मुदादाबाद, 2004
  7. गजानन मुक्तिबोध 
  8. (डाॅ॰ राजपाल शर्मा) - चांद का मुंह टेढ़ा है - एक विवेचन - अमीता प्रकाशन, चरर्वे बालान दिल्ली, 1984
  9. गुलाब राय - काव्य और कला तथा अन्य निबंध
  10. जयशंकर प्रसाद - कामायनी - भारती भंडार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद, सं॰ 2010
  11. गोस्वामी तुलसीदास - रामचरित मानस (बड़ा) - गीता प्रेस, गोरखपुर, सं॰ 2035
  12. डाॅ॰ देवराज - भारतीय संस्कृति (महाकाव्यों के आलोक में) - प्रकाशक, शशिकांत, सं॰ 1966

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