कबीर का आचार शास्त्र
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Author(s):
DR. SURESH KUMAR
Vol - 8, Issue- 8 ,
Page(s) : 217 - 223
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
Abstract
आचार शास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचार शास्त्र में उन सामान्य सिधान्तों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्धेश्यों का मूल्यांकन सम्भव हो सके। अधिकांश लेखकों और विचारकों का मत है कि आचार शास्त्र का सम्बन्ध मानदण्डों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से इन मानदण्डों का प्रयोग व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए।
- कबीर ग्रन्थावली, मन कौ अंग 7 पृ0 22
- बीजक कबीर चैरापाठ साखी 96, पृ0 393
- कबीर वचनावली उपदेश 457, पृ0 132
- सत्य कबीर साखी अंग 8 , पृ0 235
- सत्य कबीर साखी अंग 19 , पृ0 236
- कबीर ग्रंथावली, साँच को अंग पद 198 पृ0 116
- कबीर ग्रंथावली, साँच को अंग पद 184 पृ0 112
- कबीर ग्रंथावली, साँच कौ अंग 2 पृ0 33
- कबीर ग्रंथावली, बेसासा कौ अंग 8 पृ0 45
- कबीर ग्रंथावली, बेसासा कौ अंग 6 पृ0 45
- कबीर ग्रन्थावली, माया कौ अंग 13, पृ0 26
- कबीर ग्रन्थावली कामी नर कौ अंग 3, पृ0 30
- कबीर वचनावली, दया 598 पृ0 145
- कबीर वचनावली, क्षमा 571 पृ0 142
- कबीर वचनावली, शीला 565 पृ0 142
- कबीर ग्रन्थावली, बेसास कौ अंग 3, पृ0 45
- कबीर ग्रन्थावली, मन कौ अंग 15, पृ0 22
- कबीर ग्रन्थावली, निहकर्मी पतिव्रता कौ अंग 14, पृ0 15
- साखी ग्रन्थ, शब्द कौ अंग 62, पृ0 299
- साखी ग्रन्थ शब्द कौ अंग 3, पृ0 631
- कबीर ग्रंथावली, सुरातन कौ अंग 19, पृ0 54
- कबीर ग्रंथावली चितावणी कौ अंग 21, पृ0 17
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