International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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लौकिक संस्कृत साहित्य में शिक्षण विधियाॅं
1 Author(s): DR. PRAMOD SHARMA
Vol - 8, Issue- 12 , Page(s) : 266 - 270 (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पाकर कमल का पुष्प खिल उठता है तथा सूर्य अस्त होने पर कुम्हला जाता है ठीक उसी प्रकार शिक्षा के प्रकाश को पाकर प्रत्येक व्यक्ति कमल पुष्प की भाँति खिल उठता है तथा अशिक्षित रहने पर दरिद्रता शोक एवं कष्ट के अन्धकार में डूबा रहता है। शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करके उसे तेजस्वी बुद्धिमान, चरित्रवान विद्वान तथा शक्ति सम्पन्न बनाती है उसी प्रकार दूसरी ओर शिक्षा समाज की उन्नति के लिए बालकों को तैयार करती है। शिक्षा के द्वारा समाज भावी पीढ़ी को उच्च आदर्शों, आशाओं आकांक्षाओं, विश्वासों, परम्पराओं और संस्कृति को इस प्रकार हस्तान्तरित करता है नई पीढ़ी समाज का प्रतिनिधित्व कर सके। इस प्रकार व्यक्ति तथा समाज दोनों के ही विकास के लिए शिक्षा परम आवश्यक है।
1. ए. एस. अल्तेकर, एजूकेषन इन एॅनषन्ट इण्डिया, पृष्ठ सं. 80