International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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मनमोहन काल : भारत-पाक : आतंकवाद
1 Author(s): SUSHILA DEVI
Vol - 2, Issue- 3 , Page(s) : 83 - 89 (2011 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
पिछले कुछ दशकों में विभिन्न प्रकार के दबावों में काम कर रहे अंसतुष्ट गिरोहो ने अपने वैचारिक तथा राजनैतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक ताकत के इस्तेमाल की तकनीकों का जानबूझकर इस्तेमाल किया है। इस तरह की तकनीकों में डराना-धमकाना, दमन, उत्पीड़न और जान माल को नुकसान पहुँचाना जैसी हरकतें शामिल है। समाज के सभ्य तौर-तरीकों को छिन्न-भिन्न करने के लिए जिस विद्रोही और विनाशकारी हिंसा का सहारा लिया जाने लगा है उससे कई राष्ट्रों के सामने अस्तित्व का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। इस हिंसा ने हमारे सभ्य समाज को बड़े ही नायाब तरीके से अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इसे ही आज हम आतंकवाद के रूप में देखते हैं। आज आतंकवाद की समस्या किसी एक राष्ट्र से जुड़ी न होकर संपूर्ण विश्व इससे त्रस्त दिखाई दे रहा है।