International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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शुक्रनीतिसार मे मंत्रीपरिषद्

    1 Author(s):  DR.RAMPUKAR PASWAN

Vol -  11, Issue- 8 ,         Page(s) : 105 - 107  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

शुक्रनीतिसार में यह कहा गया है कि स्वतंत्रा राजा स्वेच्छाचारी हो जाता है और अनुचित कार्य में प्रवृत हो सकता है। इसलिए उसे अन्यान्य सुयोग्य सहायकों का संग्रह करना चाहिए।1 इसी को हम ‘मन्त्रि-परिषद्’ कह सकते हैं। इसमें अपेक्षित सदस्यों की संख्या, शुक्रनीतिसार के अनुसार दस होनी चाहिए। ये दस सदस्य हैं-पुरोधा, प्रतिनिधि, प्रधान, सचिव, मंत्रा, प्राड्विवाक, पण्डित, सुमन्त्रा, अमात्य तथा दूत2इस प्रसंग में एक मतान्तर का भी उल्लेख है जिसमें केवल आठ सदस्य माने गए हैं। इस मंत्रिपरिषद् के सदस्यों की योग्यता के विषय में शुक्रनीति का मत है कि इन्हें कुलीन, गुणवान, शीलवान, शूर, विद्वान्, राज-भक्त, प्रियम्वद, हितोपदेष्टा, क्लेशसह, धर्मिष्ठ, चतुर, राग-द्वेषादिदोषरहित3 एवं सच्चरित्रा होना चाहिए। दुश्चरित्रा एवं अधार्मिक सहायको के रहने पर राज्य-नाश हो जाता है। इन सदस्यों का विशेष वर्णन शुक्रनीति में द्रष्टव्य है।

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