International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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मिथिला के संस्कार गीतों का परिचय, भाषा, स्थान एवं भाव की संकुलता तथा उसकी परम्परा का विवेचन
1 Author(s): DR.ASHOK PASWAN
Vol - 11, Issue- 9 , Page(s) : 97 - 108 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
भारतीय जीवन, संस्कृति और साहित्य में संस्कार शब्द बहुत प्राचीन है। जीवन के अनेक अंगो और व्यवहारों में अनेक अर्थों में इस शब्द का प्रयोग होता रहा है। संस्कृत हिन्दी कोश भाग1 में इसका अर्थ पूर्ण करना, संस्कृत करना है। ‘रघुवंश‘ महाकाव्य में महाकवि कालिदास ने इसी अर्थ में इसका प्रयोग किया है2। पुण्य कृत्यों द्वारा शुद्ध किया हुआ, शिक्षा या अन्य विधियों से पवित्र किया हुआ भी इसका अर्थ माना जाता है3। संस्कार शब्द की व्युत्पति संस्कृत की सम्पूर्वक कृ धातु से घ´् प्रत्यय करके की गई है (सम्कृघं त्र संस्कार), और इसका प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है।