International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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भट्टिकाव्य का साहित्य एवं व्याकरणशास्त्र की दृष्टि से प्रासंगिकता।
1 Author(s): KRISHNA KUMAR
Vol - 9, Issue- 1 , Page(s) : 446 - 450 (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
आधुनिक संस्कृत साहित्य में महाकाव्य-लेखन की बात है, रामपाणिबाद (1707-1981) के महाकाव्य राघवीयम् से माना जा सकता है। यद्यपि ऐसी कोई रेखा खींच सकना कि महाकाव्य लेखन में कब प्राचीन युग समाप्त हुआ और कब नवीन युग, जिसे आधुनिक काल कहते हैं, आरम्भ हुआ, बहुत कठिन है। वैसे जहाँ तक प्राचीनता और नवीनता की मूल धाराओं की बात है, दोनों आधुनिक काल के महाकाव्यों में सम्मिलित रूप से प्रवाहित रही हैं। आधुनिक संस्कृत साहित्य के कवियों ने शताब्दियों से चली आ रही ‘‘सर्गबन्ध ’’ वाली इस विधा को बहुत कुछ भामह, दण्डी, उद्भट्ट, विश्वनाथ द्वारा प्रस्तुत लक्षणोंके अनुसार ही कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाया और इस प्रकार उनके द्वारा महाकाव्य-लेखन को प्रश्रय मिला।