दसवें दशक के हिन्दी-उपन्यासों में साम्प्रदायिकता और उसके दुष्परिणामों की अभिव्यक्ति
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Author(s):
MADHU RANI , SHAKUNTLA
Vol - 4, Issue- 3 ,
Page(s) : 611 - 617
(2013 )
DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
Abstract
साम्प्रदायिकता की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकती क्योंकि विभिन्न विश्लेषको ने इसकी परिभाषा विभिन्न आयामों के आधार पर की है। आॅक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार इसका अर्थ है समुदाय का समुदाय के लिए। सुनील कुमार अग्रवाल साम्प्रदायिकता को सकारात्मक और नकारात्मक सोच के दृष्टिकोण के माध्यम से देखते हैं। उनके अनुसार, ‘‘सकारात्मक सोच के अन्तर्गत परिभाषा का तात्पर्य होगा किसी व्यक्ति की अपने समुदाय के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रति-प्रतिबद्धता। परन्तु नकारात्मक दृष्टिकोण मंे इसका तात्पर्य धर्म के शोषणकारी प्रयोग द्वारा समूह विशेष के सामाजिक-आर्थिक स्वार्थ की सिद्धि करना है।
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