International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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एशिया महाद्वीप में श्क्ति सन्तुलन की नई सम्भावनाऐं
1 Author(s): GULAB SINGH
Vol - 5, Issue- 2 , Page(s) : 229 - 233 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
पिछले कई दशकों के अथक प्रयास के बाद भारत, चीन और जापान आर्थिक, वैदेशिक सामरिक एवं अन्य क्षेत्र में विकास कर एशिया महाद्वीप के त्रिकोण कहे जाने लगें। चीन की दादागीरी के चलते यह धुरी अब भारत और जापान की तरफ मुड़ती दिखाई दे रही हैं। इन दोनों के मजबूत होते सम्बन्ध चीनी एकाधिकार को चुनौती पेश कर सकते है। दिसम्बर 2013 में विश्व के सबसे पुराने राजवंश का 2600 वर्षो के इतिहास में पहली बार भारत आना मील का पत्थर सिद्ध होगा। अब गणतन्त्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि के रुप में जापानी प्रधानमंत्री सिजो एवी के भारत आगमन से दोनो लोकतंत्रों को जोड़ने वाली स्वतन्तत्रा और सम्पन्नता की नीति के साथ-साथ सामरिक अर्थ में भी देखा जा रहा हैं। इन दोनो के मिलने से हिन्द महासागर एवं पूर्वी एशिया में घटने वाली घटनाओं पर शक्ति सन्तुलन भी निर्धारित होगा। भारत और जापान के बीच बढ़ती साझेदारी एशिया के नवनिर्माण में वही स्थान रखते है जो चीन के उत्थान एवं अमेंरिका की नयी एशिया धुरी नीति का है।