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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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क्या हिन्दी साहित्य के इतिहास को क्रिया-प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है?

    1 Author(s):  SIMMI CHAUHAN

Vol -  5, Issue- 4 ,         Page(s) : 58 - 69  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

इतिहास देश-काल के आयाम में विकसित एवं विकासशील मानव जीवन की गवेष्णा के साथ-साथ उसकी तथ्याधरित एवं युग सापेक्ष व्याख्या है। इसी व्याख्या के तहत् इतिहासलेखन की परंपरा में विकास, मतभेद एवं क्रिया-प्रतिक्रियाओं की शृंखलाएँ जुड़ती चलती हैं। इतिहासलेखन की परंपरा लेखन परंपरा के साथ ही आरंभ होती है। प्राचीन वैदिक युग में इतिहास की मौखिक परंपरा का प्रचलन था, उत्तर वैदिक युग, पूर्व मध्यकाल तक आते-आते इस परंपरा का विकास हुआ और मौखिक के प्रतिक्रिया-स्वरूप लिखित साहित्य रचा जाने लगा।

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1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल: हिन्दी साहित्य का इतिहास।
2. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी: हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य का आदिकाल।
3. गणपति चन्द्र गुप्त: हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास।
4. नामवर सिंह: आलोचना, 1952, अक्तूबर
5. वी.एस.पाठक: एशियंट हिस्टोरिअंस आॅपफ इंडिया, 1936
6. आनल्र्ड हाऊजर: दि पिफलासपफी आपफ आर्ट हिस्ट्री, 1959
7. शिवदान सिंह चैहान: हिन्दी साहित्य के अस्सी वर्ष, 2007
8. अनिल राय ;सं.द्ध: आदिकालीन हिन्दी साहित्य, अध्ययन की दिशाएँ
9. लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय: परिप्रेक्ष्य और प्रतिक्रियाएँ
10. केसरी वुफमार: साहित्य के नए ध्रातल: शंकाएँ और दिशाएँ
11. मैनेजर पांडेय: साहित्य और इतिहासदृष्टि
12. डा. शिवुफमार: हिन्दी साहित्य का इतिहासदर्शन

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