International Research Journal of Commerce , Arts and Science

 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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'शिकंजे का दर्द' में स्त्री और दलित चेतना

    1 Author(s):  PROF. SUSHIL KUMAR SHELLY

Vol -  6, Issue- 6 ,         Page(s) : 71 - 74  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में दलित साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षरों में मोहनदास नैमिशराय, ओमप्रकाश वाल्मीकि, डॅा.सूरजपाल चौहान, श्योराज सिंह बेचैन, शरण कुमार लिंबाले,आशा आपराद, डॅा.कुसुम मेघवार, सुशीला टाकभौरे आदि प्रमुख हैं, जिन्होंने दलित चिंतन को वैचारिक आंदोलन के साथ-साथ अपने कार्यों से व्यवहारिक रूप से स्थापित किया| दलित साहित्य के अंतर्गत सबसे अधिक चर्चा का विषय दलित आत्मकथाएँ रही हैं जिनमें अपने-अपने पिंजरे (मोहनदास नैमिशराय), जठून (ओमप्रकाश वाल्मीकि), तिरस्कृत (डॅा.सूरजपाल चौहान), मेरा बचपन मेरे कंधों पर (श्योराज सिंह बेचैन), मुर्दहिया (प्रो.तुलसीदास), दौहरा अभिशाप (कौशल्या वैसंत्री), दर्द जो सहा मैंने (आशा आपराद), शिकंजे का दर्द (सुशीला टाकभौरे) प्रमुख हैं|

  1. सुशीला टाकभौरेए शिकंजे का दर्द;वाणी प्रकाशन नयी  दिल्ली.2014 

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