International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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प्रेमचंद कहानियोँ मे निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण
1 Author(s): DR.URMIL RANI
Vol - 6, Issue- 1 , Page(s) : 265 - 272 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
यह विदित है कि उन्नीसवीं शताब्दी में एक स्वतंत्र अनुशासन के तौर पर साहित्य के समाजशास्त्रीय अध्ययन की शुरुआत हुई और उन्नीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते इपोलित अडोल्फ तेन (1828-93) के माध्यम से उसको वैज्ञानिकता प्राप्त हुई। तेन से बहुत पहले फ्रांस में साहित्य के समाजशास्त्रीय अध्ययन का बीज-वपन मादाम स्तेल (1766-1817) ने अपनी पुस्तक 'सामाजिक संस्थाओं से साहित्य के संबंध पर विचार' (1800) के द्वारा कर दिया था, जिसका इस्तेमाल तेन ने अपने तर्इं किया। उन्होंने साहित्य के समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए प्रजाति, परिवेश एवं क्षण या युग के बीच क्रिया-प्रतिक्रिया से निष्पन्न उस विशिष्ट मानसिक संरचना के विश्लेषण पर बल दिया था, जिससे किसी युग-विशेष का एक केन्द्रीय बौद्धिक ढाँचा निर्मित होता है और तदयुगीन श्रेष्ठ कलाकृतियों के द्वारा अभिव्यक्ति प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में तेन ने प्रजाति, परिवेश एवं युग के अपने त्रिक सिद्धांत के द्वारा विधेयवादी पद्धति से साहित्य के सामाजिक मूलाधार की खोज करने का प्रयास किया। रवीन्द्रनाथ ने लिखा है कि साहित्य मंदिर की भित्ति पृथ्वी के गहन अन्तर्देश में गड़ी होती है और उसका शिखर मेघों को भेदकर आकाश में उठता है। तात्पर्य यह कि साहित्यकार सामाजिक तथ्यों के आधार पर ही अपनी कल्पना के झरोखे एवं मेहराब निर्मित करता है।