International Research Journal of Commerce , Arts and Science
( Online- ISSN 2319 - 9202 ) New DOI : 10.32804/CASIRJ
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दयानंद सरस्वतीः एक दूरदृष्टा राजनैैतिक विचारक
1 Author(s): RAJBIR SINGH
Vol - 4, Issue- 1 , Page(s) : 181 - 185 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ
स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना द्वारा समाज मैं फली बुराईयों और कुरीतियों के समूल नाश करने का आह्वान किया। उन्होनें 1967 ई॰ में बम्बई में आर्य समाज की नींव रखी। आर्य समाज का विशेष प्रभाव उत्तरप्रदेश, गुजरात और पंजाब में रहा। दयानंद सरस्वती असाधारण व्यक्ति थे। वे संस्कृत के अनन्य विद्वान, वाग्मी और अत्यंत मेधावी थे। उनका व्यक्तित्व अतिशय दृढ़ और असमझौतावादी था। उनके विचारों में कहीं भी अस्पष्टता और रहस्यवादिता नहीं मिलेगी। उन्होनें आर्य समाज के लिए वेदों को आधार माना और वेदों कोे अपौरूषेय कहा। उन्होने कहा कि वैदिक धर्म ही सत्य और सार्वभौम है। स्वामी जी जानते थे कि भारत रूढियांे से ग्रस्त होने के साथ-साथ धर्मभीरू भी है। उनके अनुसार सामाजिक जनजागरण के लिए हिन्दू धर्म और वेद मुख्य कारक हो सकते हैं। वेदांे के प्रति जनमानस में आरम्भ से ही उच्च स्थान हैं। उनकी पुनव्र्याख्या करके स्वामी जी ने अनेकों पूर्वधारणाओं को खण्डित कर दिया।