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 ( Online- ISSN 2319 - 9202 )     New DOI : 10.32804/CASIRJ

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हिंदी वर्तनी की समस्या

    1 Author(s):  RAJEEV JOSHI

Vol -  4, Issue- 3 ,         Page(s) : 37 - 54  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/CASIRJ

Abstract

व्याकरण की दृषिट से यदि देखा जाए तो भाषा के दो रूप हैं: मौखिक(उच्चारित) एवं लिखित। भाषा के लिखित रूप में जहाँ लिपि चिàों के रूप में मूर्त संकेत प्रयुक्त होते है वहीं मौखिक रूप में इन संकेतों को ध्वनि रूप प्रदान किया जाता है। अत: मौखिक रूप में ध्वनियों का सार्थक समूह और लिखित रूप में लिपिचिàों अथवा वर्णों का सार्थक समूह शब्द कहलाता हैं शब्दगत वर्णों के अनुक्रम को ही वर्तनी कहा जाता है। डा0 केशव दत्त रुवाली भी शब्दगत वर्णों द्वारा उच्चारणानुरूप लेखन-विधान को वर्तनी या वर्ण विन्यास से अभिहीत करते हैं। वर्तनी शब्द मूलत: संस्कृत का है जिसका कोशगत अर्थ है: मार्ग, पथ, जीना, जीवन।

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1. देवनागरी लिपी और हिंदी वर्तनी, प्रो0अनंत चैधरी, प्रथम संस्करण। 
2.प्रयोजन मूलक व्यावहारिक हिंदी डाॅ0 ओम्प्रकाश सिंहल, जगतराम एण्ड सन्स, 1996ई0।
3. भाषा विज्ञान, डाॅ0 भोलानाथ तिवारी, किताब महल प्रकाशन, पटना, 2011ई0।  
4. मानक समान्य हिंदी, डाॅ0 पृथ्वीनाथ पाण्डेय, अरिहन्त पब्लिकेशन, मेरठ।
5.व्याकरण विमर्श, डाॅ0 ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह, अपोलो प्रकाशन, जयपुर, 2009ई0।
6. समान्य हिंदी, डाॅ0 केशव दत्त रुवाली, श्री अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा, 1990ई0।
7. हिंदी भाषा, भोलानाथ तिवारी, प्रथम संस्करण। 
8.हिंदी की मानक वर्तनी,कैलाश भाटिया एवं रचना भाटिया,प्रभात प्रकाशन,दिल्ली,2010ई0।
9. हिंदी की वर्तनी, संत समीर, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 2010ई0।
10. नव भारत टाइम्स, संस्करण दि019-03-1994।

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